Wednesday, July 1, 2015

सड़कछाप के हितैषी-हिन्दी व्यंग्य कविता(sadak chhap ke hitaishi-hindi satire poem)

विकास पर आंसू बहाने वाले
विद्वानो की रोटी
भूखों के नाम पर चल ही जाती है।

सड़कछापों के हितैषियों की
महंगी विदेशी गाड़ियां भी
शहर में चल ही जाती है।

कहें दीपक बापू तख्त पर
बैठे इंसान कभी बूढ़े नहीं होते
दौलत और शौहरत के मद में
चाहे उनकी अक्ल ढल ही जाती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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